राहत इंदौरी - Latest Hindi Shayari 2020 - Rahat Indori | Lyrics HD

राहत इंदौरी - Latest Hindi Shayari 2020 - Rahat Indori | Lyrics HD - Rahat Indori Lyrics

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Singer Rahat Indori

Rahat Indori was an Indian Bollywood lyricist and Urdu poet. He was also a former professor of Urdu language and a painter. Prior to this he was a pedagogist of Urdu literature at Devi Ahilya University, Indore

◆ शायरी◆

किसने दस्तक़ दी ये दिल पर कौन है
आप तो अंदर है बाहर कौन है
शहरों में तो बारूदों का मौसम है
गांव चलो ये अमरूदों का मौसम है

राज़ जो कुछ हो इशारों में बता भी देना
हाथ जब उससे मिलाना तो दबा भी देना
वैसे इस ख़त में कोई बात नही है फिर भी
एहतियातन इसे पढ़ लो तो जला भी देना

मेरी सांसो में समाया भी बहुत लगता है
और वही शख़्श पराया भी बहुत लगता है
उससे मिलने की तमन्ना भी बहुत है
लेकिन आने जाने ने किराया भी बहुत लगता है

फैंसला जो कुछ भी हो मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क़ हो भरपूर होना चाहिए
कट चुकी है उम्र सारी पत्थर तोड़ते
अब तो इन हाथों में कोहिनूर होना चाहिए

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◆ग़ज़ल◆
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते है

जो ये दिवार का सूराख है साज़िश का हिस्सा है
मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते है

जो दुनिया को सुनाई दे उसे कहते है खामोशी
जो आंखों में दिखाई दे उसे तूफान कहते है

मेरे अंदर से एक एक करके सब कुछ हो गया रुखसत
मगर एक चीज बाकी है जिसे ईमान कहते है

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◆शायरी◆

सिर्फ खंजर ही नही आंखों में पानी चाहिए
ऐ ख़ुदा दुश्मन भी मुझको ख़ानदानी चाहिए
मैंने अपनी ख़ुश्क आंखों से पानी छलका दिया
एक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए

सुरज सितारें चांद मेरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे
शाखों से टूट जाए ओ पत्ते नही है हम
आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहे

जो तौर है दुनिया का उसी तौर से बोलो
बहरों का इलाका है ज़रा ज़ोर से बोलो
दिल्ली में हम ही बोला करे अमन की बोली
यारों कभी तूम लोग भी लाहौर से बोलो

सबको रुसवा बारी बारी किया करो
हर मौसम में फ़तवे जारी किया करो
रोज वही एक कोशिश ज़िंदा रहने है की
मारने की भी कुछ तैयारी किया करो
चांद ज्यादा रौशन है तो रहने दो
जुगनू भईया जी मत भारी किया करो

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◆गज़ल◆

अंधेरे चारो तरफ सांय सांय करने लगे
चराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे

सलीक़ा जिनको सिखाया था हमने चलने का
आज वो लोग हमको दांये बाएं करने लगे

तरक्की कर गए बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज़ है जो अब दवाएं करने लगे

अजीब रंग था मजलिस का खूब महफ़िल थी
शरीफ लोग उठे और कांय कांय करने लगे

अंधेरे चारो तरफ सांय सांय करने लगे
चराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे

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◆ग़ज़ल◆

कभी अकेले में मिलकर झंझोड़ दूंगा उसे
जहां जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूंगा उसे

मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उसका
इरादा मैंने किया था की छोड़ दूंगा उसे

पसीने बांटता फिरता है हर तरफ सूरज
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूंगा उसे

मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे

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◆शायरी◆

कश्ती तेरा नसीब भी चमकदार कर दिया
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया
अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब है
औऱ लोगों ने पूछ पूछ कर बीमार कर दिया
दो गज सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है
ऐ मौत तूने मुझको जमींदार कर दिया

मेरे हुज्रे में नही और कहीं पर रख दो
आसमां लाये हो ले आओ जमीं पर रख दो
अब कहाँ ढूंढने जाओगे हमारे क़ातिल
आप तो क़त्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो
मैंने जिस ताख पे कुछ टूटे दिए रखे है
चांद तारों को भी ले जाके वहीं पर रख दो

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◆ग़ज़ल◆

तेरी हर बात मोहब्बत में गंवारा करके
दिल के बाजार में बैठे है खसरा करके

आसमानों की तरफ फेंक दिया है मैंने
चंद मिट्टी के चरागों को सितारा करके

आते जाते है कई रंग मेरे चेहरे पर
लोग लेते है मज़ा ज़िक्र तुम्हारा करके

मैं वो दरिया हूँ हर बून्द भंवर है जिसकी
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके

मुंतजिर हूँ सितारों की ज़रा आंख लगे
चाँद को छत पे बुला लूंगा इशारा करके

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◆शायरी◆

आज हम दोनो को फुरसत है चलो इश्क करे
इश्क दोनो की जरूरत है चलो इश्क करे
इसमे नुकसान का ख़तरा ही नही रहता है
ये मुनाफ़े की तिजारत है चलो इश्क करे
आप हिन्दू मैं मुसलमान ये ईसाई वो सिक्ख
यार छोड़ो ये सियासत है चलो इश्क करे

उसकी कत्थई आंखों में है जंतर मंतर सब
चाकू वाकू छुरियां वुरीया खंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठी मुझसे रूठे रूठे है
चादर वादर तकिया वकिया बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़कर वो भी कहाँ पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपडे जेवर वेवर सब

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◆शायरी◆

अगर खिलाफ है होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुँआ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में
यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद है कल नही होंगे
किराएदार है जदती मकान थोड़ी है
सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है



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